देखा जाए तो कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से सामान्य नही होता | दैनिक जीवन के उतार चढ़ाव मे सभी को कभी न कभी निराशा, चिता क्रोध भय बेचैनी घबराहट हताशा भ्रामक विचार शक सहानुभूति चाहना ईर्ष्या व्देष आदि भावनाओ का सामना करना पड़ता है।
यदि ये थोड़े समय तक रहते हैं तो वे मानसिक रोग नही कहलाते । ये तो जीवन के हिस्से हैं। जब ये लम्बे समय तक बने रहे तो मानसिक रोग बन जाते है । मन रोगी होने से तन भी रोगी हो जाता है।
क्या है मानसिक रोग:
जब बुध्दि स्थान की निर्बलता हो जाए और भाव का स्थान प्रबल हो जाएं जिससे चिंता, शोक भय आदि भाव निरन्तर बने रहें तथा हमारी अनैच्छिक नाड़िया निरन्तर उत्तेजित रहने लगें तब ईस मनोरोग मानस रोग\ मानसिक रोग कहने हैं । यह भावप्रधान रोग होता है।
क्यों होते हैं मानसिक रोग: कुछ रोग पीढ़ी-दर पीढ़ी चलते है जिनका मन कमजोर होता है तथा जिनकी संकल्प शक्ति कमजोर होती है वे प्राय: मानसिक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। जिन बालकों का मानसिक विकास नहीं होता या जिनकी बीमारी की अवहेलना हो जाती हैं जिन्हें माशिक संघर्ष अधिक करना परता है उन्हें भी ये रोग सताते हैं। इनके अतिरिक्त संयुक्त परिवार का दबाव दूसरो का दुर्व्यवहार, अनमेल विवाह, माता-पिता का पक्षपात, असफल प्रम मनचाही नौकरी ना मिलना व्यापार में असफलता मिलना दिमागी इन्फेक्शन होना अधिक नशाखोरी दिमाग तक खून ना पहुँचना तथा अपराधी वृत्ति वाले व्यक्ति को मानसिक रोगी होने की सम्भावना होती है। भावात्मक असन्तुलन के अतिरिक्त सिर में चोट लगने से आने वाली विकृति भी एक कारण बानता है। ज्ञानेन्द्रियों की संवेदन शून्यता भी मानसिक रोगी बनाती है । नकारात्मक सीरियल भी इसी ओर ले जाते है । मानसिक आघात भी मानसिक रोग पैदा करता है । शल्क चिकित्सा व प्रसव के समय शरीर कमजोर होना, शारीरिक भयंकर रोग होना, सही पोषण न होना युवा अवस्था (16-20) वर्ष के प्रारम्भ मे भी यह रोग हो सकता है। इच्छाएँ पूर्ण न होने तथा विकट परिस्थति से तालमेल बिठाने में असफल होना पूर्ण परिपक्वता न हो पाना किसी रोग होने की धारणा बन जाना आदि कारण मानसिक रोगों के आधार हैं।
मानसिक रोग के प्रकार
1 न्यूरोसिस – गलत मानसिक दृष्टिकोण से आया भावात्मक आसन्तुलन । इसमें दुश्चंता निराश हताशा भ्रामक विचार आना, वहम (छुआछुत सफाई ) तथा न्यूरो स्थिनिया (कोई रोग न निकलने पर भी रोगी समझना)
2 साइकोसिस – गंभीर भावात्मक असन्तुलन या पागलपन के रोग। इसमे रोगी की तर्क शक्ति व निर्णय शक्ति खो जाती हैं। सेच समझ मे बुनियादी खराबी आ जाती है। हर बात मे वह खुद को सही ठहराता है। उसकी असलियत की पहचान खो जाती है। उसकी समाजिक स्थिति गड़बड़ा जाती है। उसकी कार्यक्षमता घटा जाती है।
3 साइकोटिक – इसके रोगीयों मे हताशा (डिप्रेशन) रोने व आत्महत्या का व्दन्व्द झूलने लगता है। स्किजोफ्रोनिया (विभाजित मन की बीमारी ) इसमें आती है। पैरानायड रोग भी इसी का रुप है।
4 साइकोसोमेटिक – इसमें मन व शरीर की बीमारियां आती है।
5 मेंटल रिटार्डेशन – इसमें व्यकित काणवश या जन्मजात मानसिक बाधता का शिकार होता है।
6 साइकोपैथ – इसमें आपराधिक मानसिकता वाले रोगी आते हैं।
मानसिक रोगों के लक्षण:
यूं तो हर रोग के अलग – अलग लक्षण होते हैं परन्तु मानसिक रोगों के सामान्य लक्षण इस प्रकार है- असामान्य व्यवहार करना शरिर मे रोग न होने पर रोग को महसूस करना उदासी चिंता तनाव तन मन मे असन्तुलन अकारण शक करना दूसरों से सहानुभूति पाने की इच्छा अधिक बोलना या न बोलना बड़बड़ाना श्वास गतित तेज या मन्द्रा सी रहना निस्तेज आँखे रहना तथा अपने को तुच्छ या महान समझना । एक शब्द को या वाक्यांश को दोहराना एक ही विचार दिमाग मे घूमता रहे, छोटी सी बात को लंबी बना कर कहना स्मृति लोप होना एकाग्रहीनता पानी जानवरों से भय लगना संसार को झूठा समझना न करना हकलाना तुतलाना ध्वनिलोप लेखन अक्षमाता घंटों एक ही स्थिति मे बैठे रहना संकल्प शक्ति का ह्रास होना कोई व्यसन पाल लेना समाज विरोधी काम करना उदासीनता आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
उपचार:
यम नियम का पालन करें । चक्रासन हलासन सेतुबधासन सुप्तवजासन मत्यसन सर्वागांसन भ्रामरी प्राणायाम अनुलोम विलोम गगनभेदी कपालभाति प्राणायाम 15-20 मिनट तक करना। ध्यान व योग निद्रा करें । सकारात्मक सोच अपनाएं प्रेरक पुस्तकें पढें हॉबी शुरू करें गतिशील रहें । सन्तुलित सात्विक आहार लें तथा खूब हँसे।