ऐसी नई सामग्री का पता चला है जो कचरे के ताप को कुशलतापूर्वक बिजली में परिवर्तित करके छोटे घरेलू उपकरणों और वाहनों को विद्युत शक्ति प्रदान कर सकती है
वैज्ञानिकों ने एक नई शीशा मुक्त सामग्री का पता लगाया है जो कचरे की ऊर्जा को कुशलतापूर्वक विद्युत में परिवर्तित करके छोटे घरेलू उपकरणों और वाहनों को विद्युत शक्ति प्रदान कर सकती है।
जब सामग्री का एक सिरा दूसरे सिरे को ठंडा रखते हुए गर्म किया जाता है तो थर्मोइलेक्ट्रिक ऊर्जा के रूपांतरण से विद्युत वोल्टेज उत्पन्न होती है। इस वैज्ञानिक सिद्धांत को अनुभव करते हुए इस कुशल सामग्री की खोज ने वैज्ञानिकों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य प्रस्तुत कर दिया है। इस एक सामग्री में दिखाई दे रहे तीन विभिन्न गुणों – धातुओं की उच्च विद्युत चालकता, अर्धचालक की उच्च थर्मोइलेक्ट्रिक संवेदनशीलता और शीशे की कम तापीय चालकता का समावेश है।
अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा उपयोग की जा रही सबसे निपुण थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्रियों के रूप में शीशे का एक प्रमुख घटक के रूप में उपयोग किया जाता रहा है, जिससे बड़े वृह्द व्यापर अनुप्रयोगों में उनका उपयोग प्रतिबंधित रहा।
भारत सरकार के वैज्ञानिक और प्रद्योगिकी विभाग के स्वायत्तशासी संस्थान जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने प्रोफेसर कनिष्क विश्वास के नेतृत्व में कैडमियम डोप्ड सिल्वर एंटिमनी टेल्यूराइड (एजीएसबीटीई2) की पहचान की है जो कचरे की ऊर्जा से विद्युत के प्रभाव को अपने अंदर से निपुणतापूर्वक प्रवाहित कर सकती है। इससे थर्मोइलेक्ट्रिक पहेली में एक प्रतिमान बदलाव हुआ है। वैज्ञानिकों ने साइंस पत्रिका में इस बड़ी सफलता की जानकारी दी है।
प्रो. कनिष्क बिस्वास और उनके साथियों के समूह ने सिल्वर एंटिमोनी टेल्यूराइड को कैडमियम (सीडी) के साथ डोप्ड किया और नैनोमीटर स्केल में परमाणुओं के परिणामी क्रमों को देखने के लिए एक उन्नत इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी तकनीक का उपयोग किया। नैनोमीटर-स्केल परमाणु ऑर्डरिंग स्कैटनर्स फोनोन्स एक ठोस में उष्मा को आगे ले जाते हैं और इस सामग्री में इलेक्ट्रॉनिक अवस्था को डेलोकेलाइजिंग करते हुए विद्युत प्रवाह को आगे बढ़ाते हैं।
पहले रिपोर्ट की गई अत्याधुनिक सामग्री मध्य-तापमान रेंज (400-700 के) में 1.5 से 2 की सीमा में थर्मोइलेक्ट्रिक फीगर ऑफ मेरिट (जेडटी) को प्रदर्शित कर रही है। टीम ने 573 के पर 2.6 में थर्मोइलेक्ट्रिक फीगर ऑफ मेरिट (जेडटी) में रिकॉर्ड वृद्धि की जानकारी दी है, जो ऐसी उष्मा प्रदान कर सकती है जो 14 प्रतिशत तक विद्युत ऊर्जा रूपांतरण दक्षता उपलब्ध करा सकती है। प्रो. बिस्वास अब उच्च-प्रदर्शन थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्री और उपकरणों का व्यवसायीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं; इसमें टाटा स्टील सहयोग कर रहा है जहां स्टील पावर प्लांट में अपशिष्ट उष्मा सृजित होती है।
इस कार्य में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसडी), भारत की स्वर्ण जयंती फेलोशिप और परियोजना निधि के अवाला, न्यू केमिस्ट्री यूनिट (एनसीयू) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर मैटेरियल्स साइंस (आईसीएमएस) जेएनसीएएसआर बैंगलोर के सहयोग से मदद मिली है।
चित्र- (ए) परमाणु क्रमबद्ध अनुकूलन रणनीति की योजना और इसका थर्मोइलेक्ट्रिक मापदंडों पर प्रभाव: विद्युत चालकता (एस) और सीबेक गुणांक (एस). (बी) इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक इमेज 6 मोल प्रतिशत सीडी डॉप्ड सिल्वर एंटिमोनी टेल्यूराइड में कैसन ऑडरिंग के निर्माण को प्रदर्शित करते हुए। (सी) तापमान पर निर्भर थर्मोंइलेक्ट्रिक मैरिट ऑफ फीगर, जेएडटी प्रिस्टाइन सिल्वर एंटिमोनी टेल्यूराइड टू और 6 मोल प्रतिशत सीडी डॉप्ड सिल्वर एंटिमोनी टेल्यूराइड।
[प्रकाशन लिंक- https://science.sciencemag.org/content/371/6530/722अधिक जानकारी के लिए प्रो. कनिष्क विश्वास से (biswas.kanishka@gmail.com; kanishka@jncasr.ac.in) संपर्क किया जा सकता है।]