नोएडा समाज जागरण
आज तक आपने देखा होगा कि 1 लाख आवेदकों में से सिर्फ 1 हजार को आवासीय भूमि मिल पाते है, लेकिन यमुना प्राधिकरण में भारत के एक अजूबा आवासीय परियोजना की 2001-2008 में निकाला गया जिसमें 9 हजार के जगह 21 हजार आवंटियों को प्लाट दिया गया वह भी बड़े साइज में।
जेवर में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की काम जोरो पर है और एक प्रकार से यह प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथा और देश प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है। लेकिन सवाल उठता है कि जब यहाँ पर एयरपोर्ट बनाए जा रहे है तो इसके आस-पास में यानि की यमुना एक्सप्रेसवे औद्योंगिक विकास प्राधिकरण नें सन 2001 से लेकर 2008 के बीच में 21 हजार आवासीय भू-खंडों को आवंटित किया। जबकि उस समय में ऐसी कोई योजना नही चल रही थी। भू-खंडों की साइज भी 300, 500,1000,2000 और 4000 हजार वर्गमीटर में था। जोकि उस समय में 4750 रुपये प्रति वर्गमीटर के दर से दिया गया था जो कि आज के समय में लगभग 20-30 हजार प्रति वर्गमीटर के दर के रेट है।
नोएडा शहर के वरिष्ठ नागरिक व अधिवक्ता श्री अनिल के गर्ग ने इस आवंटन पर सवाल उठाये है और पत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखा है। आखिर इतने बड़े प्लाट साइज का आवंटन क्यों किया गया ? 1000 से लेकर 4000 वर्ग मीटर के इतने बड़े आकार के भू-खंडों की आवश्यकता क्या थी और क्यों आवंटित किए गए थे? जबकि उस समय में और आज भी ग्रेटर नोएडा में बहुत सारे फ्लैट और प्लाट खाली है।
अब जबकि सभी आवासीय भू-खंडों की दर लगभग 25 हजार रुपये तक की है तो क्या यहाँ पर जानबुझकर ये खेल खेला गया?
बता दे कि 2001-2008 में, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 21 हजार आवासीय भूखंडों को आवंटित किया था, जो 300 वर्गमीटर, 500 वर्गमीटर, 1000 वर्गमीटर, 2000 वर्गमीटर और 4000 वर्गमीटर जो कि रु .4750 / वर्गमीटर के दर से। यहाँ पर लगभग 9 हजार भूखंडों की सबसे बड़ी आवासीय योजना थी। लेकिन उस समय लगभग 21 हजार आवेदकों ने आवेदन किया था और बड़ी हैरानी की बात की सभी को भूखंड मिल भी गया। । भारत के यह एकलौता आवासीय परियोजना होगा जिसमें 9 हजार के जगह 21 हजार आवंटियों नें आवेदन किया और शत प्रतिशत उनको अलाटमेंट भी किया गया। लेकिन आज तक वह भू-खंड खाली पड़े है। शायद भू-खंडों को भी एयरपोर्ट बनने का ही इंतजार था। अब इस जमीन को खरीद बिक्री करके बहुत सारे ब्लैकमनी व्हाइट किये जायेंगे।
सवाल तो यह भी है कि आखिर गरीबों के लिए 50 मीटर , 100 मीटर और 200 मीटर की प्लाट आवंटित क्यों नही किए गए। अगर वहाँ पर विकास कार्य होता है तो वहाँ बड़ी संख्या में मध्यम वर्गी और निम्न वर्गीय मजदूर लोग काम करने आयेंगे और उनको रहने के लिए घर की जरूरत होंगी। आस पास के गाँव में जाकर अतिक्रमण करेंगे और स्मार्ट सिटी का माखौल उड़ायेंगे। जो बड़े प्लाट आवंटित किए गए थे आखिर उसमें कौन लोग रहेंगे ?
बता कि नोएडा ग्रेटर नोएडा में एक बड़ा घोटाला उस समय सामने आया जब किसानों नें मुआबजा के मांग करते हुए हाइकोर्ट में शरण लिया। उनका कहना था कि जब उद्योग लगाने के लिए जमीन लिया गया है तो उस पर आवासीय निर्माण क्यों किया जा रहा है, किसानों के साथ धोखा हुई है। ऐसा ही कुछ मामला यमुना प्राधिकरण के भी है, अगर इस आवासीय भूमि का भी जांच किया जाय तो कुछ ऐसा ही घोटाला सामने आयेगा। क्योंकि यह भारत में एक अजुबा आवासीय परियोजना है जिसमें 9 हजार के जगह 21 हजार आवेदकों को जगह दिया गया।