विचार नहीं छिपते
महाभारत कला का बात है और अज्ञातवास में पांडव रुप बदल कर ब्राह्मणों के वेश में रह रहे थे । एक दिन मगर में उनहे कुछ ब्राह्मण मिले वे राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में जा रहे थे पांडव भी उनके साथ चल परे स्वयंवर में एक धनुष को झुकाकर बणा दुसरा निसाना लगाना था वहा आया समस्त राजा निसाना लगाने तो दुर धनुष को झुक भी नही सकते लेकीन अर्जुन धनुष झुक लिया और लक्ष्य को भेद दिया शर्त के अनुसार द्रौपदी का स्वयंवर अर्जुन के साथ हो गया तत्पश्चात पांडव दौपदी को साथ लेकर अपनी कुटिया में आ गए ।
एक ब्राह्मण व्दारा स्वयंवर में विजय होने पर राजा दुपद को बरा आश्चर्य हुआ वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन से विर युवक के साथ करना चाहते थे । अत; राजा दुपद ने पांडव की वास्विक्ता का पता लगाने के लिए राजमहल में भोज का कार्यकर्म रखा और उसमे पांडव को बुलाया राजमहल को कोई वस्तुऔ से सजाया गया था एक कक्ष में फल फुल आसन आदि ब्राह्मणो के उपयोग की वस्तुओ था दुसरे कक्ष मे ,गाय ,रस्सीया ,बीज आदी किसाने के उपयोग की साम्रगी रखवाई तिसरे कक्ष में युध्द में काम आने वाले अस्त्र –शस्त्र रखवा दिया भोजन करने के बाद सभी लोगो अपने पंसद की वस्तुओ दिखाने लगे ब्राह्मण वेशधारी पांडव सब से पहले उसी कक्ष में गए जाहां अस्त्र – शस्त्र रखे थे । दौपदी के पिता राजदुपद बड़ी बारीकी से गतीविधीयो देख रहे थे । वे समझ गया की ऐ पांचवा ब्राह्मण नही ,क्षत्रिय़ अपने ब्राह्मणो को सामान्य वस्त्र जरुर पहन रखे है . पंरतु आप लोग है । क्षत्रिय़ “
युधीष्टिर हमेशा सच बोलते थे उनहे स्वीकार कर लिया की वे सच मुच क्षत्रिय है . और स्वयंवर मे जीतने वाला अर्जुन है जानकर राजा दुपद खुश हो गए ।
व्यक्ति अपना वेश भले ही बदल ले लेकीन उसके विचार आसानी से नही बदलते । हम जीवन में जैसे काम करते है वेसे ही हमारे विचार रहते है ।
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